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MADHUNISHA SAMWAAD : PART-I

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मधुनिशा-रति संवाद
(PREMONMAYEE SAEAS RATI SARITA-157)  
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(एक)

सखि आई सखि से मिलने बेचैन हुई अकुलाई
था अधीर मन सखि से पूछे कैसे रात बिताई
लप-लप लपका जिया धड़कता सुनने मन अकुलाया
लिपट सखी से कहा बता री रात गज़ब क्या ढाया

चूम कपोल चिकोटी काटे सखि हंस सखि से बोली
छोड़ संग-साथ तूने अब मेरी छुट्टी हो ली
दोनों लेने मरीं जिसे तूने वह पहले पा ली
कह करतब उसका मुझसे सुनने मरती मैं साली  

“सुना बहुत नटखट अनदेखा जिसने बहुत लुभाया
मुझसे हुई सयानी अब तू कह कैसा वह पाया
अब तक रहीं खेल इक-दूजीं सपन धरे जो नटखट
देख न पाईं कभी करें क्या हाय बता तू झटपट

सच-सच कह तू हाल रात का इक-इक बिना छिपाए
सुनने अकुलाया मन मेरा रखे मुझे तरसाए”
कर सखि बात याद वह जो हम-दोनों में हो आई
कह हवाल चुलबुली चूत की कैसी हुई धुनाई

प्यारी मुझसे कुछ न छिपाना तुझे कसम देती हूँ  
सच न कहा जो ठीक न होगा अभी कहे देती हूँ
तेरी थी मधु-निशा मगर हलचल मुझमें थी भारी
हाय गुजरती तुझपर क्या सोचे यह रात गुजारी

मुरझाया मुखड़ा आँखें अलसाई सखि मुसकाई
बोली हाय कहूँ कैसे सखि मैंने रात बिताई
आँखों में तिरता पल-पल मैं किये याद कंप आऊं  
गुज़री पहली रात मधुनिशा कैसे  तुझे बताऊँ

“साली नखरे छोड़ बता ” कह सखि चोली चिटकाई  
“ऊह छोड़ ना री ” कह दुलहन फिर हवाल कह आई

[b](दो)[/b]


दिन तो बीता जैसे तैसे घिरी भीड़ रह आई
काटे कटा न पल तक छिन-छिन रात धुक-धुकी छाई
घेर रात चपलाएं ठेल मुझे बिस्तर तक लाईं
चिबुक थाम चिमटे कपोल तक हौले से मुसकाईं

बोलीं हाय कली प्यारी हो पहली रात मुबारक
सोना तू न उसे सोने देना अब भोर हुए तक
फिर जेठानी भाभी आई धर देवर को खींचे
मुसकाए रख भरा कटोरा दूध पलंग के नीचे

घुंघटा उठा चिकोटी काटे चूम कान तक डोली
“हा री प्यारी बन्नो मेरी बलि जाऊं मैं” बोली
बोली “लल्ली रात तुम्हारी पहली मत घबराना
रखे जगा नटखट देवर को रह-रह रात छकाना

भरी शरारत झाँक नयन में मुसकाती कह आई
“पूछूँगी मैं सुबह बताना कैसे रात बिताई”
जाते पलट तकी हंस भाभी किये चुहल बतलाने
“लल्ला इतर तेल चन्दन का रक्खा है सिरहाने

दूध कटोरे दिया रखे है मिल दोनों पी लीजो
मिले खूब आराम बदन को भिगा तेल से लीजो”
हुआ बंद दरवज्जा सिहरा बदन कंपकंपी छाई
हाय न जाने क्या हो अब बुर सोचे सिमट लजाई

*****

(तीन)
(पहली रात भाभी की सीख)


रखा सिखाए भाभी ने था पहली रात न देना
खड़ा चढ़े ठेले लल्ली वह पर घुसाने ना देना
चढ़-चढ़ रहा टटोले वह तू कस कस सिकुड़ छिपाना
पगली तू न पिघलना तड़पा उसे रखे पिघलाना

हाथ पाँव दाबे मनुहारे हार टटोले झिल्ली
कस पंजे रखना पर उसको मार न पाए बिल्ली
पिघल न जाना अपनी उसपर रखना काबू भींचे
चढ़ा उसे मत लार बहाती लेना ‘गप..गप’ खींचे

रखना याद न आना पहली रात टांग के नीचे
जो यूं हारा बन गुलाम हरदम भागे फिर पीछे
एक रात बस एक रात तरसाना उसे जगाए
दौड़ जनम फिर तू अपने रख पीछे उसे भगाए

*****

(चार)

सखि बोली “उइ हा रे गुर अच्छा यह मुझे बताया
हाय..हाय कह फिर आगे कैसा क्या होता आया”
बोली दुलहन “किया वही मैंने जो था समझाया
दिया पहुँचाने नहीं वहाँ तक उसको खूब खिझाया

कलाकार वह हाय गज़ब री जिसने तिया रचाई
दुष्कर लेना कली लाल धर ऐसी जगह छुपाई
चूमा चाटा झिंझोडा पर हठ थी धुन में छाई
देना पहली रात न रह-रह बात याद हो आई

हाथ फेर नन्हीं पर अपने आई किये गरब मैं
रात सता बालम को जीते मुसकाई मन-मन मैं
रही जानती सब कुछ पर भोली यूं मैं आई बन
जैसे सकुच रहे नाज़ुक कोई शरमाई दुलहन

किये जतन सारे मैने रख उसको खूब छकाया
खीझ फुला मुख आखिर वह रूठा मुंह फेरे आया
छोड़ा उधर मुझे उसने मैं हाय इधर रह रोई
रखे मना उसको लेने फिर जगी कामना सोई  

करना था जो किया न करने दिया सोच पछताई
हाय मनाऊँ कैसे उसको सोचे पहर बिताई
रह-रह देखे थे सपने कस-कस कर की तैयारी
झुरस हाय मधुनिशा सखी पर बैठी मैं मनमारी


(पांच)
(चूत छिपाने पर दूल्हे का रूठना और पछताई दुलहन का उसे
मनाने जतन)




पहली रात पड़ा मुंह फेरे यूं मुझसे रह आया
हुई न मैं उसकी जैसे हो मुझसे रहा पराया
कोस-कोस भाभी की सीखें मन ही मन पछताई
मुख उसका देखे रह-रह री छूटी मुझे रुलाई

उधर पड़ा वह खड़ा लंड ले इधर कुलबुलाई बुर
प्यासी मैं प्यासा वह बीच अड़ी थी सिखलाई गुर
घंटों रही अड़ी भाभी की सीख बीच रह आई
उसको तडपा रखे संग हा री तडपी मैं आई

हो आया क्या से क्या उफ़ मन रोने-रोने आता
मरी तड़प जिस पल को वह था बीता पल-पल जाता
रही उमंगें प्यासी बैठीं कर भिड़ने तैयारी
सता रही थी मुझे मरी बुर चुदने कुलबुल भारी
मैं तो मूरख पर बुद्धू क्यों बलम रही मैं सोचे
पलट-पटक-धर-फाड़-जांघ दे क्यों न लंड बुर ठोके  

बेबस बीत रही घड़ियाँ थीं सपने छूटे जाते
मन में मची उतावल काश लिपट सुख लूटे आते
उलटा पड़ा दाँव वह जीता मैं हारी रह आई
मधुर मिलन की चाह चुदाई रह आँखों में छाई

तरस तड़प खीझा तन बुर रिस चली लाज रह छूटी
मन आया खुद चढ़ी लपट गुंथ क्यों न रहूँ सुख लूटी
वह मेरा मैं क्यों न पहल कर चूमी उसे मनाऊँ
क्यों न लंड धर झपट प्रेम से दे बुर मैं चुदवाऊँ

हुई बावली रह न गया आखिर सूझी चतुराई
होश न हो ज्यों चिपक पीठ से उसके मैं रह आई
हाथ-पाँव लादे उस पर करवट ले यूं मैं सोई
ज्यों मासूम न जाने कुछ सोया चिपका हो कोई  

करवट-करवट तड़प मचल यूं बड़ी देर रह आई
किये बहाना ज्यों सोई बेसुध फिर चिपक समाई
हुआ असर जाने क्या मौसम फ़ौरन आया बदला
अंगडाया तन जैसे छेड़ जगाया उसका मचला


(छह)


बौराया फौरन पलटे वह फाड़ टांग चढ़ आया
झटक तोड़ अंगिया चोली फेकी साड़ी बिखराया
किये बहाना था वह औचक तन्नाता उठ आया
“खूब छकाया तुमने प्यारी” कहे नोच तन खाया

रुका न इक पल झपट लंड दे गुदगुद मुझे चुभाता
टूट भिड़ा बुर चूमे-चाटे मुझको खूब लुभाता
“उइ हा क्या करते कहती रह गयी मगर ना माना
समझ गयी मैं अब बिन चोदे रहे न यह दीवाना

फूली छाती चपक –मसक झिंझोड़ चूचियां चिमटे
बेकाबू कर दिया हाय री अलट-पलट कस लिपटे
रह न सकी मैं बेकाबू बुर रिसी फुरकाती फूली
उठ लहराती झटक लंड धर बुर-पट सब मैं भूली

सखि ने आह भरी बोली कह फिर जल्दी क्या आगे
सुन-सुन लगी आग बुर री क्यों भाग न मेरे जागे  
“हट साली” बोली दुलहन सखि “शरम मुझे है आती
अब रहने दे कहूँ और क्या समझ न तू क्यों जाती”

क्या फिर हुआ न पूछ रखा कैसे कस-कस कर मारा
तोड़ बाँध टूटे कैसे उसने रस रह-रह झारा
आह जुबाँ थक रही कहे सखि जो फिर मैंने पाया
सोचा कभी न जैसा तन पर स्वर्ग उतर वह आया

सपने देख-देख जिसके आईं हम दोनों जीती
सच जब हुआ कहूँ बातें सब हो रह आईं फीकी
हुआ वही आखिर जो होना था सखि तू सब जाने
रह न गया तैयार हो चले इक-दूजे को पाने

हठ सारा रह गया धरा फिर रति-पुराण चल आया
चला खूब संवाद सुबह तक किस्सा वह मनभाया
क्या बरनन मैं करूँ आह सखि समझ न पाऊँ प्यारी
छाय नयन मद जुबाँ थके मति रहे डूब सुध हारी    

सच का मज़ा और देखे सपनों में जो ना आता
जाने वही कहूँ सच री जो सच में मज़ा उठाता
पूछ न आगे फिर तफसील न काबू रख पाएगी
छोड़ें चल अब बात बिरथ सुन-सुन तू पछताएगी

जब वह पल आएगा आएगी बारी जब तेरी
क्या कैसा वह मज़ा तभी जाने सखि प्यारी मेरी
कहने में वह मज़ा कहाँ जो करने में मिल आये
बिछे सुहाग-सेज सखि जब तू समझ आप ही जाये


(सात)


मौन रहा दो पल सखि-सखि अनाबोली चुप रह आईं
सदमा लगा बात सुन सखि की सखि रह मुख-मुरझाई
हो उदास बोली “तू कहती ठीक समझ मैं पाई
इक-दिन में हो चली पराई मुझसे तोड़ मिताई
 
उठी कहा चलती सखि अब मैं तुझसे कुछ न कहूंगी
हुई जुदाई आज न तेरा नाम कभी अब लूंगी
एक रात में हुई सयानी बड़बोली अब जाना
हुई भूल सखि करना माफ मुझे जो अपना जाना  

देखा मुख मुरझाया सखि का दुलहन सखि सकुचाई
रूठ चली सखि-मुख देखे झुरसी उदास हो आई
धरी बांह खींचे लग गर सखि को रक्खा लिपटाए
हा प्यारी सखि क्या कहती तू” कहती अंक लगाए

तुझसे भेद न कोई बस कहते मैं रही लजाई
कैसे वह सब कहूँ सोच रह मैं तुझसे सकुचाई
बोली “सखि रूठी क्यों छोड़ मुझे तू यूं है जाती
“मुश्किल बयाँ आह किस्सा वह पर सुन हूँ बतलाती

*****

(आठ)
आगे बयाँ दुलहन का
(बदला मौसम उर्फ चुदाई का माहौल)

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छूटी लाज सरम इक दूजी रह न भेद कुछ आया
चूमे सखि को दुलहन ने आगे का हाल सुनाया
बोली “अरी लिपट भी उससे मैं थी कुछ घबराई
पर था चतुर सुजान चढ़े चूमा तब राहत पाई

कस-कस भींचे चूम-चाटना शुरू हुआ फिर तब क्या
दबी रही चिनगी जो भडकी तपे आग तन तडपा  
मन आया तूफ़ान डुले तन चढ़ा गज़ब का जादू
बुर थिरकी फडका लौड़ा आया उफान बेकाबू

लपट झिंझोड़ खूब बुर उसने सखि यूं रख पिघलाया
रही सकल मति भूल बदन टूटा चुदने बौराया
पोर-पोर थिरकी बेकाबू हाथ-पाँव लहराये
रहा छूट धीरज चुदने बुर लपकी होश गंवाये

उमग-उमग सखि बात किये जिसकी बुर बह-बह आयी  
कहूँ आह क्या सखि जब उसकी झलक सामने आयी  
इक-दो-तीन नहीं सखि पंच-अंगुरी भर खड़ा मुटाया
काढे मुंडा बुर्र लाल घूरे था वह मनभाया

चूहे सा सोया वह सखि औचक तन-तन लंबाता  
उइ हा री फिर खड़ा नाग सा काढे फन लहराता
ठप्प..ठप्प’ दे टाप चढ़ा फिर दौड़ अश्व सा आये
देखे कंपी फुरकती बुर हा री वह पटक न खाये

रहा छूट धीरज सखि झुक जकड़े मैं मुट्ठी आई
चूम चुहक गालों पर फेरे मस्ती मुझमें छाई
औचक खड़ा ताना गुद-गुद वह छू जांघें टकराया
सखि भूली मैं होश गंवा सब चढ़ा नशा सा छाया

पास-पास फिर और पास कस लुढके दोनों लपटे
चढ़ा ज्वार तन धर बेकाबू इक-दूजे पर झटके
निकली मुख से ‘आह’ अंत सखि जो चाहा वह पाया
चूत कुलबुला उठी चुदाने थिरकी अंग-अंग काया  

झपट लंड धर खींच टिका बोली मैं “हा अब आओ”
आग लगी बुर तरसी चुदने और न अब तरसाओ”
धर मुठ्ठी भर उठी समाया लंड न फूला जाता  
फटीं निहारे औचक आँखें देख उसे तन्नाता


(नौ)


जैसा मेरा हाल उधर भी मची उतावल भारी
बेकरार लेने इक-दूजे थे पूरी तैयारी
जांघें चिकनी संगमरमरी देखे रह रह तडपा
छिपी चूत गुलगुल लेने फन्नाया लौड़ा फडका

बाँध कमर बांहों में कस टांगों को ठेल उठाया    
‘चप-चप’ चूम फाड़ बुर प्यारी ठोके लंड धंसाया
भूलूँ हाय न मुख दमका वह चढ़ी ललाई छाई  
फाड़ी मार झपट्टा चोली धर अंगिया बिखराई

चमकी आँख चपल चपला सी लहंगा रख पलटाया
कसी दाब जांघें थपकाई चढ़ बुर ठेले आया
खड़ा कड़क फूला जबरा रगड़े बुर छील समाया
“ऊ’..हा रे स्सी.सी..” कर चीखी लेते जी घबराया

चूत कड़क फांसे झुक चूम अधर अलकें कर फेरे
सटा गाल पर गाल कहा भुज से कटि उसने घेरे
“रानी प्यारी सिमट न कस यूं पसर ज़रा बुर खोले
डर न तनिक गुडिया नाज़ुक बुर लूं मैं हौले-हौले”


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Written by premonmayee
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